January 10, 2016

उन आँखों में

उन आँखों में जो कुछ भी था
परे था वो
किसी भी यथार्थवादी या स्वप्नदर्शी की
मर्यादाओं से
कलम की ताकत कम पड़ जाती थी
जुबान देते हुए उन रंगों को
कहते थे हर युद्ध अौर विराम
है केंद्रित उससे
पर वह उन सब से परे था
निर्विकार , एकाकी
हर कहीं खोजता हुअा
अपना हीं सच

1 comment:

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