October 24, 2014

कहीं दीप जले कहीं दिल

अंधेरे की अमानत अमावस
आज रौशनी का रहनुमा बना
चौराहे पर खरा बच्चा भी
कटोरे में कुछ सिक्के जुटा कर
फुलझरियाँ खरीद लाया
जज्बा सराहनीय लगा उसका
अंधेरे को उजालों से जीत लेने का

खूब रौशनी हुई, कुछ धुआँ भी
शायद नमी रह गयी थी कहीं
मन में, या आँखों में शायद
बारूद के कुछ गोले तो सुलगते ही रहे
चमक नहीं पाये दूर आकाश में
विरहिणी के जब्त अरमानोँ की हीं तरह

मेवों मिठाइयों का आदान प्रदान भी हुआ
सौहार्द संतुष्‍टि, अहंकर की पुष्टि
सबका मिलाजुला भाव था
आराधना का माहौल भी बना
कहीं काली पूजा हुई कहीं लक्ष्मी पूजा
जगह जगह का अपना असर था ये
कुछ गुत्थीयां अनसुलझी भी रहीं
कहीं दीप जले कहीं दिल
पता नहीं ये आस्थाओं का असर था
या अवस्थाओं का .....


- अपर्णा



October 12, 2014

उड़ते चलो उड़ते चलो


हैं पांव अभी मासूम से,
बे-खता, बे-फ़िक्र से,
पर कांटों से आगे बढ़कर,
तुझे रस्ते में फूल खिलाने हैं
हे नव सृजन! हे नव सृजक!
चलते चलो, चलते चलो.


रुकना नहीं किसी शर्त पर
झुकना नहीं किसी दंश से,
गिरना नहीं किसी कर्म से
मुड़ना नहीं सन्मार्ग से ,
हे भोर सूरज की किरण !
बढ़ते चलो, बढ़ते चलो.


आगे बढ़ो तेरी राह में,
कुछ प्राण हैं बेबस विकल
कुछ सुन कभी, कुछ गुन कभी,
और हो किसी के हित सजग
हे प्राणमय निर्भय पथिक ,
उड़ते चलो , उड़ते चलो.


-अपर्णा