वरदासुंदरी जानती थीं की परेश को लोक-व्यवहार का ज्ञान बिलकुल नहीं है, दुनिया में किस बात से क्या सुविधा या असुविधा होती है इस बारे में वह कभी कुछ सोचते ही नहीं, सहसा एक-न-एक काम कर बैठते हैं | उसके बाद कोई चाहे गुस्सा करे, बिगड़े या रोये-धोये, वह एकदम पत्थर की मूर्ति बने बैठे रहते हैं | ऐसे आदमी से भला कौन निबाह सकता है ? जरुरत होने पर जिसके साथ झगड़ा भी न किया जा सके उसके साथ ग्रिहस्थी कौन स्त्री चला सकती है |
Book : गोरा , Author : रबीन्द्रनाथ टैगोर
Book : गोरा , Author : रबीन्द्रनाथ टैगोर
Jb aap Etna ascha likhte ho tohh likhna band kyu kiya hai aapne.
ReplyDeleteAapke kavita ke dwara hum smz skte aap bahut hasmuk insaan ho
Please continue karoo likhna..