March 19, 2016

किताबों के पन्नों से : झगड़ा

वरदासुंदरी जानती थीं की परेश को लोक-व्यवहार का ज्ञान बिलकुल नहीं है, दुनिया में किस बात से क्या सुविधा या असुविधा होती है इस बारे में वह कभी कुछ सोचते ही नहीं, सहसा एक-न-एक काम कर बैठते हैं |  उसके बाद कोई चाहे गुस्सा करे, बिगड़े या रोये-धोये, वह एकदम पत्थर की मूर्ति बने बैठे रहते हैं | ऐसे आदमी से भला कौन निबाह सकता है ?  जरुरत होने पर जिसके साथ झगड़ा भी न किया जा सके उसके साथ ग्रिहस्थी कौन स्त्री चला सकती है |  

Book : गोरा , Author :  रबीन्द्रनाथ  टैगोर 

1 comment:

  1. Jb aap Etna ascha likhte ho tohh likhna band kyu kiya hai aapne.
    Aapke kavita ke dwara hum smz skte aap bahut hasmuk insaan ho

    Please continue karoo likhna..

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