कई बरस हो गये
चार पाँच या उससे भी ज्यादा
तुम्हारा नाम मिट नहीं सकता
बस कुछ कुछ धुंधला सा गया था
मेरे वजूद में
चलना सीखी थी मैं
तुम्हारी हीं रौशनी ढुंढते हुए
पर राहें मुड़ती रहीं
कहां निकल गई मैं
दिशा का भान भी नही रहा
औऱ फिर जब सामना हुआ
वहीं बवंडर महसूस कर रही हूं मैं
शायद एक तरंग हो तुम
अद्वैत अनंत एकाकी
या एक आवाज हो तुम
उत्थान का
चार पाँच या उससे भी ज्यादा
तुम्हारा नाम मिट नहीं सकता
बस कुछ कुछ धुंधला सा गया था
मेरे वजूद में
चलना सीखी थी मैं
तुम्हारी हीं रौशनी ढुंढते हुए
पर राहें मुड़ती रहीं
कहां निकल गई मैं
दिशा का भान भी नही रहा
औऱ फिर जब सामना हुआ
वहीं बवंडर महसूस कर रही हूं मैं
शायद एक तरंग हो तुम
अद्वैत अनंत एकाकी
या एक आवाज हो तुम
उत्थान का