March 25, 2015

शक्‍तिमयी ललनाएँ

हम निसर्ग की सर्वश्रेष्ठ कृति शक्‍तिमयी ललनाएँ प्रतिभा प्रज्ञा सुंदरता की गढ़ी हुई रचनाएं वसुधा की अस्मिता समेटे अम्बर का असीम आनन हवन कुण्ड के लपटों जैसी प्रज्वलित पुनीत पावन कभी सती अनुव्रता अनुगामिनी या तूफानों की गति से द्रुततर कभी नाशिनी चण्डी ज्वाला या शुभ्र शबनम सी शीतल क्षमा दया तप त्याग मनोबल की साकार प्रतिमायें आँखों में छवि इन्द्रधनुष की सात समंदर आंचल में विविध रूप की विविध कान्ति है सातों स्वर है पायल में व्यथाओं को भूलने हेतु हम कादम्बिनी नहीं मांगती उल्लास के स्पंदन हेतु लालसा का तांडव नहीं चाहती खुद बनकर अप्सरा वारांगना या गृहलक्ष्मी रमणी रंजना अंधेरों का दीपक बनने को मोहक पर कच्चे रंगों से खुद को हम बहलायें और सुनो हे मानव जीवन हम वात्सल्यमयी जननी बन पिला अमिय सीने से तुझको बना स्नेह शक्ति से पूरित चाहूँ तेरी रजायें हम निसर्ग की सर्वश्रेष्ठ कृति शक्‍तिमयी ललनाएँ |
- अपर्णा

3 comments:

  1. काफी उम्दा लगा पढ़के | तत्सम हिंदी पे आपकी पकड़ सराहनीय है |

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  2. Blogging is the new poetry. I find it wonderful and amazing in many ways.

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