April 18, 2014

आभार

न लब्ज़ सुना होता, न जाम पिया होता,
सिरा मेरी जिंदगी का, तुमसे यूं न जुड़ा होता,
मैं पा लेती, कुछ खोकर,
मैं खो जाती, कुछ पाकर,
भरपूर मेरा जीवन ऐसे न हुआ होता,
जो सांस मेरा तेरा कुछ यूं न जुड़ा होता...

रिश्तों की क्वायद में,
मैं छोटी ही रहती शायद,
दिल का मेरे इस जग में,
कोई न हुआ होता,
जो द्वार तेरे मेरा पथ यूं न मुड़ा होता...

उजरे से चमन को जो,
मयख़ाना न बना देते तुम,
पत्थर आगोश में लेकर,
पयमाना न बना देते तुम,
अंधेरी सी राहों मे यूं उजाला न हुआ होता,
पाकीज़ जहां मे कुछ यूं, मोहब्बत न हुआ होता...
                                            -अपर्णा


No comments:

Post a Comment