हम निसर्ग की सर्वश्रेष्ठ कृति
शक्तिमयी ललनाएँ
प्रतिभा प्रज्ञा सुंदरता की
गढ़ी हुई रचनाएं
वसुधा की अस्मिता समेटे
अम्बर का असीम आनन
हवन कुण्ड के लपटों जैसी
प्रज्वलित पुनीत पावन
कभी सती अनुव्रता अनुगामिनी
या तूफानों की गति से द्रुततर
कभी नाशिनी चण्डी ज्वाला
या शुभ्र शबनम सी शीतल
क्षमा दया तप त्याग मनोबल की साकार प्रतिमायें
आँखों में छवि इन्द्रधनुष की
सात समंदर आंचल में
विविध रूप की विविध कान्ति है
सातों स्वर है पायल में
व्यथाओं को भूलने हेतु हम
कादम्बिनी नहीं मांगती
उल्लास के स्पंदन हेतु
लालसा का तांडव नहीं चाहती
खुद बनकर अप्सरा वारांगना
या गृहलक्ष्मी रमणी रंजना
अंधेरों का दीपक बनने को
मोहक पर कच्चे रंगों से खुद को हम बहलायें
और सुनो हे मानव जीवन
हम वात्सल्यमयी जननी बन
पिला अमिय सीने से तुझको
बना स्नेह शक्ति से पूरित
चाहूँ तेरी रजायें
हम निसर्ग की सर्वश्रेष्ठ कृति
शक्तिमयी ललनाएँ |
- अपर्णा